कैसे जिऊँ जिंदगी चैनो-शुकून से
आखिर कैसे जिऊँ ए-जिंदगी तुझे चैनो-शुकून से ।
जिन्हें मैं प्यार करता हूँ , वो जीने नहीं देते ,
मैं साथ रहना चाहता हूँ उनके, पर वो रहने नहीं देते,
परेशान सा रहने लगा हूँ ,दूरियाँ बढाईं हैं उन्होंने तब से।
आखिर कैसे जिऊँ ए-जिंदगी तुझे चैनो-शुकून से ।
बचपन में जिंदगी जीने का मजा ही कुछ और था ,
चंचलता थी स्वभाव में ,और काफी शुकून था ,
ना कोई छल था और ना कोई कपट था तब जिंदगी में
अब डर लगने लगा है ,मुझे मेरे बड़े हो जाने से ।
आखिर कैसे जिऊँ ए-जिंदगी तुझे चैनो-शुकून से ।
इस जमाने के लोग मतलबी बहुत हैं ,
काम निकल जाए फिर पहचाना नहीं करते ,
जिनके लिए कभी खास हुआ करते थे हम ,
आज वो पहचान कर भी पहचाना नहीं करते ,
तंग आ गया हूँ , इस मतलबी दुनियाँ के मतलबी लोगों से ।
आखिर कैसे जिऊँ ए-जिंदगी तुझे चैनो-शुकून से ।
सोचा था जब कोई जीवन का हमसफर बनेगा ,
वो मेरी उलझनों को सुनेगा और समझेगा ,
मेरी इस जिंदगी से जंग में ,कदम से कदम मिलाकर चलेगा,
लेकिन वो भी कहाँ अलग है ,उन मतलबी लोगों से ।
आखिर कैसे जिऊँ ए-जिंदगी तुझे चैनो-शुकून से ।
अब समझ नहीं आता, जिंदगी से चाहत रखूँ या दूर हो जाऊँ,
नफरत करूँ इस दुनिया से ,या और करीब हो जाऊँ ,
अब कोई तो मुझमें जीने की आस जगा दे ,
जिंदा रहूँ या ना रहूँ , ये मुझे समझा दे ,
अब कोई उम्मीद रखूँ या ना रखूँ इस मतलबी जमाने से ।
आखिर कैसे जिऊँ ए-जिंदगी तुझे चैनो-शुकून से ।
रचनाकार :
कमल जीत सिंह शिकोहाबादी
YADAV KAMAL JEET SINGH
बेसिक शिक्षा विभाग उ०प्र०,
कार्यरत जनपद - बदायूँ