इस कविता को कमल जीत सिंह की आवाज मे सुनने के लिए लिंक पर क्लिक करें ।
कविता का शीर्षक :
आखिर कैसे तेरा प्यार पाऊँ
मैं सोचता हूँ , आखिर कब समझेंगे आप मेरी हकीकत ,
एक वो तुम्ही तो थे ,जिससे थी मुझे बेपनाह मोहब्बत ।
तुम्हें क्या फर्क पड़ता है ,कि अकेले मैं कैसे जीता हूँ ,
तुम्हें तो हर बात मजाक लगती है,जबकि मैं हकीकत कहता हूँ।
तुम तो खुद पागल कहकर मेरा मजाक उडाते हो ,
मैं हंसता हूँ अपनी बेवकूफी पर, और तुम मुस्कराते हो ।
मजाक ही तो है जिंदगी ,मैं खुद भी एक मजाक हूँ ,
मजाक था मेरा प्यार ,और मेरे जस्बात भी मजाक हैं ।
मेरे साथ हँसती है , ना दिखा ये दिखावा मुझको ;
मैं जानता हूँ तू खुश है ,छोडकर अकेला मुझको ।
मैं रोता नहीं हूँ , लेकिन अंदर से खुश भी तो नहीं ;
माना जिंदा हूँ अब तक,पर जीने की अब कोई वजह भी तो नहीं ।
अब चीखूं-चिल्लाऊं ,विनती करूँ या गुहार लगाऊं ,
आखिर तेरा प्यार पाने को,कितना खुद की नजरों में गिर जाऊँ ।
दुनियाँ को तू दोष देता है,खुद की कमियां नहीं देखता ,
गलती तो हर इंसान से होती है,पर तू खुद को समझता है देवता ।
अब मैं चाहता हूँ कि कुछ ऐसे शब्द लिख जाऊं ;
अगर आज मौत हो गई मेरी,तो कल इन शब्दों से तुझे याद आऊं ।
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